
वाराणसी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर परिषद में स्थित Gyanvapi Masjid को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है और ये मामला निचली अदालतों से लेकर अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है। हालांकि कोर्ट के आदेश के बाद इस मस्जिद का सर्वे तो पूरा कर लिया गया है लेकिन इसके बाद हिंदू पक्ष के दावे अलग हैं तो वहीं मुस्लिम पक्ष के दावे अलग। Gyanvapi Masjid में शिवलिंग है या नहीं इसकी सच्चाई सामने आने में अभी कितना वक्त लगेगा इन सवालों का जवाब मिलने में भी अभी थोड़ा समय लगेगा, क्योंकि दरअसल कोर्ट कमिश्नर ने अपनी सर्वे रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 2 दिन का और वक्त मांगा है। Supreme court अब 19 मई को फिर इस मामले में सुनवाई करने जा रहा है।
क्या है Gyanvapi masjid dispute
वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर परिषद में स्थित Gyanvapi Masjid को लेकर विवाद चल रहा है जिसमें हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद kashi vishwanath मंदिर परिसर का ही हिस्सा था और वह भी मंदिर था 17 वीं शताब्दी में इस मंदिर को मस्जिद में बदल दिया गया था और हिंदू पक्ष ने वहां शिवलिंग होने का भी दावा किया है जिसे मुस्लिम पक्ष नकारता आ रहा है जिसके चलते अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है।
Gyanvapi Masjid मामला क्या है
kashi vishwanath मंदिर परिषद के बगल में बनी ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा करने के लिए 5 महिलाओं ने राजद के लिए वाराणसी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जिसके बाद महिलाओं की मांग पर अदालत ने वहां सर्वे करने का आदेश दिया था।
ज्ञानवापी परिसर केस 1936 – 2022
- वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी परिसर को लेकर सबसे पहला मुकदमा दीन मोहम्मद बनाम स्टेट सेक्रेटरी ने सन 1936 में दर्ज कराया था, उन्होंने निचली अदालत में याचिका दायर करके Gyanvapi Masjid और उसके आसपास की जमीनों पर अपना हक बताया था, इसके बाद कोर्ट ने इसे मस्जिद की जमीन मानने से इनकार भी कर दिया था।
- सन 1937 में दीन मोहम्मद ने फिर Allahabad high court में अपील की थी जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी के व्यास परिवार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए मस्जिद के ढांचे को छोड़कर बाकी सभी जमीनों पर उनका हक बताया। आपको बता दें बनारस के तत्कालीन कलेक्टर का जो नक्शा था वह भी इस फैसले का हिस्सा बना जिसके तहत मस्जिद के तहखाने का मालिकाना हक़ भी व्यास परिवार को ही दिया गया।
- इसके बाद 15 अक्टूबर 1991 में Gyanvapi परिसर में नए मंदिर निर्माण और पूजा पाठ की इजाजत को लेकर एक बार फिर मामला कोर्ट में पहुंचा। अबकी बार यहां मामला kashi vishwanath मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ राम शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने वाराणसी की अदालत में दाखिल कराया, इसमें उनके वकील विजय शंकर रस्तोगी थे।
- फिर Gyanvapi Masjid मामले में वाराणसी की अदालत में दायर याचिका में तर्क दिया गया था कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था जोकि 1669 में तुड़वाकर औरंगजेब द्वारा वहां मस्जिद बनवा दी गई थी।
- अब दाखिल याचिका के आधार पर सिविल जज सीनियर डिवीजन ने दावा चलने का आदेश दिया। अब दोनों पक्षों ने सिविल रिवीजन जिला जज के सामने चुनौती दी। जिसके बाद सिविल जज के फैसले को निरस्त कर दिया गया और पूरे परिसर को सबूत जुटाने का आदेश मिला।
- इसके बाद अंजुमन इंतजामियां मस्जिद कमेटी जोकि Gyanvapi Masjid की देखरेख करती थी वह अब इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंची कमेटी ने या दलील दी कि इस मामले में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता क्योंकि प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट के तहत इसकी मनाही है, जिसके चलते हाई कोर्ट ने जिला जज के फैसले पर रोक लगा दी।
क्या है Places of worship Act 1991?
इस एक्ट के तहत 15 अगस्त 1947 से पहले जो भी धार्मिक स्थल जिस रूप में था उसी रूप में रहेगा उसके साथ कोई छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया जा सकता अगर किसी व्यक्ति द्वारा किसी धार्मिक स्थलों के साथ कोई बदलाव या छेड़छाड़ करने की कोशिश की जाती है तो उसे 1 से 3 साल की कैद व जुर्माना दोनों सजा होने का प्रावधान है। इस एक्ट को मंदिर-मस्जिद के विवादों पर विराम लगाने के लिए Prime Minister P.V Narasimha Rao लेकर आए थे।
क्या आपको पता है चुनाव लड़ने से पहले ही एमएलए (MLA) बन गए थे मुलायम।
ज्ञानवापी मामले में अब क्या हो सकता है?
Places of worship Act के तहत मुस्लिम पक्षकारों का यह कहना है कि इस कानून के तहत कोई भी कार्यवाही नहीं हो सकती क्योंकि 1998 में इसी कानून के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला जज के फैसले को रोका था। वहीं दूसरी ओर हिंदू पक्ष का कहना है कि इस मामले में यह कानून लागू नहीं होता क्योंकि जो भी मस्जिद बनी हुई है वह मंदिर के अवशेषों पर उसे बनाया गया था, जिसके हिस्से आज भी मौजूद हैं।
तो कैसे सुलझा Ayodhya का Ram mandir मामला?
Ram mandir Ayodhya विवाद को Places of worship Act 1991 से छूट दी गई थी जिसका कारण यह था कि अयोध्या विवाद मामला आजादी से पहले ही कोर्ट में चल रहा था। जिसका फैसला 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया था, इस फैसले के तहत अयोध्या में राम मंदिर बनाने की इजाजत दी गई और मुस्लिमों को मस्जिद बनाने के लिए दूसरी जगह जमीन देने का आदेश दिया गया।