सनातन धर्म में देवताओं में गणेश भगवान की पूजा सबसे पहले होती है। वह प्रथम पूजनीय हैं, हिंदू धर्म में किसी भी मंगल कार्य की शुरुआत करने से पहले इनकी पूजा और अव्हान किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश की पूजा के बिना यदि किसी कार्य को शुरू कर दिया जाता है, तो उस कार्य में किसी ना किसी प्रकार के विघ्न आने लगते हैं और पूजा अधूरी मानी जाती है। इस लिए कोई पूजा या नई शुरुवात करने से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा करन औऱ उनका अव्हान करना जरुरी होता है। लेकिन इसके पीछे क्या कारण है। ऐसा क्यो होता है। इसबार में हम इस आर्टिकल मेंं अपको बताने जा रहे है।
कैसे मिला प्रथम पूजनीय होने का वरदान
पुराणों के अनुसार सभी देवता ब्रह्मा जी माने को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। इसलिए वह पितामह के नाम से भी प्रसिद्ध है। ब्रह्मा जी को जब यह निर्णय करना था कि देवताओं में सर्वप्रथम किसकी पूजा हो, तब तय किया गया कि देवताओं में सबसे पहले जो भी पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले आएगा वही प्रथम पूज्य माना जाएगा। जिसके बाद सभी देवता गण अपने-अपने वाहन से पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल गए।
लेकिन भगवान गणेश ने ऐसा नहीं किया और वह अपने माता पिता यानी भगवान शिव शंकर और माता पार्वती को सम्पूर्ण ब्रम्भाण्ड मानकर उनकी 7 परिक्रमा कर ली। यह देखकर भगवान शिव का मन प्रफुल्लित हो उठा और आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। अब जाहिर है कि भगवान गणेश सभी देवताओं में सबसे पहले पहुंचे अतः उनके इस कर्म को देखते हुए भगवान ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रथम पूज्य होने का वरदान दे दिया जिसके बाद से आज भी किसी भी कार्य में भगवान गणेश की पूजा सभी देवताओं में सबसे पहले की जाती है। ऐसा ना होने पर पूजा को अधूरा माना जाता है।
क्या है इसका प्राचीन प्रमाण
भगवान श्री गणेश जी का जिक्र दुनिया के प्रथम धर्म ग्रंथ ऋग्वेद में भी किया गया है। आपको बता दें ऋग्वेद में गणपति शब्द आया है और इसका उल्लेख यजुर्वेद में भी है। जो संप्रदाय भगवान गणेश की उपासना करने वाला होता है वह गणपतेय कहलाता है।