टाइम ट्रेवल की बात सुनते ही दिल और दिमाग में अचानक से एक जिज्ञासा उठ पड़ती है की अगर Time Travel संभव हो तो क्या होगा? इसी को देखते हुए हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक की फिल्म जगत में न जाने कितनी फिल्में बन चुकी हैं। जिसमें या दिखाया जाता है की टाइम मशीन में बैठकर कैसे एक इंसान समय के आगे पीछे जा सकता है। यह तो हुई फिल्मों की बात लेकिन असल में यह असंभव सा लगता है लेकिन सच बात यह है की टाइम ट्रेवल करना सच में संभव है। टाइम ट्रेवल क्या है इसे समझने के लिए 20वीं सदी के महानतम वैज्ञानिको में से एक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अहम भूमिका निभाई थी। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी (Theory of relativity) यानी सापेक्षता का सिद्धांत स्पेस और टाइम को एक साथ जोड़ता है।
क्या आप जानते हैं की अंतरिक्ष यान हो या विमान या कोई सैटेलाइट इन पर लगी गाड़ियों का समय हमारी पृथ्वी पर लगी गाड़ियों का समय में थोड़ा सा अंतर है। क्योंकि इस ब्रह्मांड में मौजूद हर चीज टाइम ट्रेवल कर रही है जिसमें हम और आप भी मौजूद हैं बस अंतर यह है कि हमारे टाइम ट्रेवल की जो रफ्तार है वह ऐसी है जिसका कुछ पता नहीं चलता। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के मुताबिक हम सभी समय में लगभग एक सेकंड प्रति सेकंड बराबर की स्पीड से ट्रेवल कर रहे हैं।
क्या है अल्बर्ट आइंस्टीन के सिद्धांत की सच्चाई ?
Time Travel की बात सुनते ही सबके मन में यही सवाल पैदा होता है कि आखिर हमें कैसे पता चलेगा कि टाइम ट्रेवल संभव है। इस बात को समझने के लिए आपको समय में थोड़ा पीछे जाना होगा यानी करीब 109 साल पहले जब महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने बताया था कि टाइम कैसे कार्य करता है, उन्होंने थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी का सिद्धांत देकर बताया था जो की एक आधुनिक फिजिक्स के आधारभूत सिद्धांतों में से एक है।
आइंस्टीन के सिद्धांत के अनुसार समय और स्पेस दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और उन्होंने ब्रह्मांड की गति के बारे में भी बताया था कि उसकी भी एक सीमा है। यानी कि ब्रह्मांड की कोई भी वस्तु प्रकाश की गति (299,792,458 मीटर/सेकेंड) से ज्यादा तेज नहीं चल सकती। यदि कोई भी चीज जितनी भी तेजी से ट्रैवल करेगी टाइम उसके लिए उतना ही धीमा होता जाएगा। आखिरकार उनके इस सिद्धांत के चलते वैज्ञानिक अपने तमाम प्रयोग में इसे साबित भी कर चुके हैं।
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए सबसे मशहूर प्रयोग में से एक प्रयोग एटॉमिक गाड़ियों वाला रहा है जिसमें हमारी पृथ्वी पर एक घड़ी को रखा गया और दूसरी घड़ी को एक हवाई जहाज में उड़ाया गया इस दिशा में जिस दिशा में पृथ्वी घूमती है। इस सफर के बाद वैज्ञानिकों द्वारा दोनों एटॉमिक गाड़ियों के समय की जांच की गई तो दोनों गाड़ियों के समय की तुलना में यह पाया गया की विमान में लगी हुई घड़ी का समय हमारी पृथ्वी पर मौजूद घड़ी से थोड़ा पीछे चल रही थी। इन दोनों गाड़ियों के समय में कुछ नैनो सेकंड का अंतर पाया गया जो की काफी कम है लेकिन इस सिद्धांत को साबित करने के लिए काफी है।
वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि टाइम ट्रेवल करना बेशक संभव होगा जब मानव द्वारा कोई ऐसा विमान तैयार किया जा सके जिसकी गति प्रकाश की गति के आस-पास हो। ऐसे विमान में जो भी चीज सावर होगी वास्तव में वह टाइम ट्रेवल कर चुकी होगी।